• 28 राज्यों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के
बाद राज्य को मौका मिला।
• दुर्ग रेलवे स्टेशन से टीम दिल्ली के
लिए रवाना हुई.
• रिखी और उनकी टीम 10वीं
बार राजपथ पर राष्ट्रीय परेड का हिस्सा बनेगी.
• आदिम समाज नींबू को राजा मानकर न्याय
करता था।
• चार दशकों से दुर्लभ संगीत
वाद्ययंत्रों का संग्रह कर रहे हैं
दुर्ग-भिलाई. देश की राजधानी नई दिल्ली
में गणतंत्र दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ की झांकी "बस्तर की आदिम लोक संसद:
मुरिया दरबार" कार्तवी पथ पर दिखेगी। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक वाद्य
संग्राहक और लोक कलाकार रिखी क्षत्रिय एक बार फिर नजर आएंगे। इस साल गणतंत्र दिवस
समारोह में बस्तर की आदिम लोक संसद पर आधारित छत्तीसगढ़ की झांकी को केंद्र सरकार
ने मंजूरी दे दी है. इस झांकी में जगदलपुर के मुरिया दरबार और इसके प्रवर्तक लिमाऊ
राजा को दर्शाया गया है। भिलाई इस्पात संयंत्र से सेवानिवृत्त एवं प्रसिद्ध लोक
संगीत संग्रहकर्ता रिखी क्षत्रिय एवं उनके समूह को इस झांकी को देश-विदेश से आए
अति विशिष्ट अतिथियों के समक्ष जीवंत रूप में प्रदर्शित करने की जिम्मेदारी दी गई
है। यह 10वीं बार है जब रिखी क्षत्रिय और उनकी टीम को छत्तीसगढ़ की झांकी
प्रदर्शित करने का अवसर मिला है। टीम मुरिया दरबार को प्रदर्शित करने की तैयारी
में जुटी है. झांकी में टीम मुरिया जनजाति के उत्सव नृत्य का प्रदर्शन करती नजर
आएगी. यहां मरोदा सेक्टर स्थित लोकांगन परिसर में सभी कलाकार रिहर्सल में जुटे हुए
हैं।
सीएम ने दी शुभकामनाएं
इसके लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने
नई दिल्ली के लिए रवाना हो रही छात्राओं को शुभकामनाओं के साथ विदाई दी. यह झांकी
छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज में प्राचीन काल से मौजूद लोकतांत्रिक चेतना और
परंपराओं को दर्शाती है। यह झांकी भारत सरकार की थीम "भारत: लोक तंत्र की
जननी" पर आधारित है। सीएम साय ने वीडियो कॉल के माध्यम से बालिकाओं से बात की
और कहा कि पूरे छत्तीसगढ़ का मान-सम्मान आपके हाथ में है. उन्होंने लड़कियों का हौसला
बढ़ाते हुए कहा कि 28 राज्यों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद
राज्य को यह मौका मिला है. छत्तीसगढ़ की बेटियों ने हमेशा प्रदेश का नाम ऊंचा किया
है। आज एक बार फिर हमारे राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का
अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस के मौके पर कर्तव्य पथ पर आयोजित परेड
पर पूरी दुनिया की नजर हमारे भारत पर रहती है. यह एक ऐसा माध्यम है जहां देश की
कला संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिलता है। साय ने विश्वास जताया कि हमारी
बेटियां अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति और
प्राचीन परंपराओं को न केवल देश में बल्कि वैश्विक मानचित्र पर भी पहचान दिलाने
में सफल होंगी।
नींबू को राजा मानकर न्याय किया जाता
था
इस झाँकी में केन्द्रीय विषय “आदिम
जन संसद” के अंतर्गत जगदलपुर के मुरिया दरबार एवं उसके स्रोत लिमाऊ-राजा को
दर्शाया गया है। मुरिया दरबार विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा परंपरा है जो 600
वर्षों से चली आ रही है। इस परंपरा की उत्पत्ति के स्रोत कोंडागांव जिले के
बड़े-डोंगर के लिमाऊ-राजा नामक स्थान पर मिलते हैं। इस स्थान से जुड़ी लोक कथा के
अनुसार आदिम काल में जब कोई राजा नहीं होता था तो आदिम समाज नींबू को राजा का
प्रतीक मानकर आपस में निर्णय लेते थे।
चार दशकों से दुर्लभ संगीत
वाद्ययंत्रों का संग्रह कर रहे हैं
भिलाई स्टील प्लांट से सेवानिवृत्त
रिखी क्षत्रिय बचपन से ही छत्तीसगढ़ी लोक कला और संस्कृति के प्रति समर्पित रहे
हैं। वह पिछले चार दशकों से छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में जाकर दुर्लभ संगीत
वाद्ययंत्रों का संग्रह कर रहे हैं। उनके संग्रह को पिछले दो दशकों में देश के सभी
राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों सहित कई विशिष्ट अतिथियों ने देखा और सराहा है।
वही रिखी क्षत्रिय पिछले दो दशकों में 9 बार छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भेजी गई
गणतंत्र दिवस की झांकी का नेतृत्व कर चुके हैं. इस साल 2024 का गणतंत्र दिवस
समारोह रिखी क्षत्रिय के लिए 10वां मौका होगा जब वह एक बार फिर राजपथ
पर नजर आएंगे.|